*दरगाह शरीफ सूफी सुल्तान शाह (छेंकुर वाले बादशाह बाबा) शिकोहाबाद, ज़िला फ़िरोज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, इंडिया - 205135*
*हज़रत सूफी सुल्तान शाह साहब रo अo* (छेंकुर वाले बाबा) के नाम से भी जाने जाते हैं ये दरगाह उत्तर प्रदेश के ज़िला फ़िरोज़ाबाद के एक कस्बे शिकोहाबाद के रेलवे स्टेशन के पास नहर किनारे तकरीबन 5 एकड़ ज़मीन पर तामीर है। ये दरगाह दाराशिकोह (मुग़ल बादशाह औरंगजेब के भाई) के समय से बनी हुई है, जो कि सरकारी रिकॉर्ड में भी दर्ज है। कई बार इस दरगाह के आस पास के इलाके उजड़े ओर बसे परंतु दरगाह का बाल भी बांका नहीं हुआ। सन 1938 से लगातार यहां मई महीने के पहले चार दिनों सालाना उर्स होता है। जिसमें पूरे हिंदुस्तान से हज़ारो लाखों लोग हाज़री लगाने आते हैं और अपनी झोलियाँ भर के ले जाते हैं। ये बाबा साहब का करम ही है के नेक नीयत से माँगने वाला यहाँ से कभी खाली हाथ नहीं जाता, बाबा सभी की मुरादें पूरी करते हैं। जिनकी मुरादें पूरी होती हैं वो बतौर शुकराना बाबा साहब की मज़ार शरीफ़ पर अपनी अक़ीदत की चादर और फूल पेश करते हैं उर्स के समय तो ज़ायरीन और चादरों की गिनती करना भी मुश्किल है। बाबा की दरगाह पर बड़े बड़े उलेमाओं, राजनेताओं ओर जानी मानी हस्तियों ने अपनी हाजरी लगाई है और ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। यहाँ बाबा के मुरीदों में मुस्लिमों से ज्यादा हिंदुओं की तादात है। ये कहना बिल्कुल सही है के *फ़कीर का कोई मज़हब नहीं होता* यहाँ पर हिन्दू मुस्लिम की जो एकता और आपसी भाईचारा देखने को मिलता है वो हिंदुस्तान में सूफी विचारधारा को बढ़ावा देता है। इस दरगाह पर बाबा साहब के हुक्म से गोश्त खाने और पकाने की सख्त मनाही है। हुज़ूरे आलिया का तबर्रुक और लंगर में साफ सफाई का खास खयाल रखा जाता है। हज़रत सूफी सुल्तान शाह साहब रoअo का सिलसिला चिश्तिया घराने से बताया जाता है। आपके उर्स में अजमेर शरीफ़, निज़ाम साहब, कुतुब साहब, कलियर शरीफ़, देवा शरीफ आदि कई दरगाहों से, वहाँ के खादिम भी सरकार की बारगाह में फूल पेश करने और हाजरी लगाने आते हैं।